आदिवासी क्षेत्रों में विकिरण की त्रासदी
आदिवासी क्षेत्रों में विकिरण की त्रासदी अजय कुमार चौधरी सहायक प्राध्यापक , हिन्दी पी. एन. दास कॉलेज , पलता , उत्तर 24 परगना , पश्चिम बंग Email – ajaychoudharyac@gmail । com संपर्क- 8981031969/ 98742455556 महुआ माजी के उपन्यास “मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ” में चित्रित आदिवासी अस्मिता की पहचान जल , जंगल , जमीन से विस्थापित होकर पुरखो की संस्कृति से अलग होना साथ ही विकास के नाम यूरेनियम खनन से होने वाली विकिरण प्रभाव की त्रासदी है | आदिवासी भारतीय समाज की एक ऐसे अनसुलझे पहलू से जुड़ा हुआ है जिसको सुलझाने में भारतीय सामाजिक व्यवस्था में अमूलचुल परिवर्तन की आवश्यकता होगी | आदिवासी भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था से दूर घने जंगल , पर्वत , पहाड़ की आदिम खुशबू है जो इस धरा की प्राकृतिक नियम के अनुसार जीवन यापन करते हैं किन्तु इस आधुनिकता के विकास दौर में हम इतनी तेज गति से दौड़ रहे हैं कि आदिवासियों की जल , जंगल , जमीन का दोहन कर प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन कर इनके जीवन को त्रासदी की भयंकर मर झलने के लिए छोड़ देते हैं | वर्तमान में विकास के नाम से जिस तरह जल ,