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Showing posts from February, 2018

आदिवासी क्षेत्रों में विकिरण की त्रासदी

आदिवासी क्षेत्रों में विकिरण की त्रासदी     अजय कुमार चौधरी सहायक प्राध्यापक , हिन्दी पी. एन. दास कॉलेज , पलता , उत्तर 24 परगना , पश्चिम बंग Email – ajaychoudharyac@gmail । com संपर्क- 8981031969/ 98742455556         महुआ माजी के उपन्यास “मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ” में चित्रित आदिवासी अस्मिता की पहचान जल , जंगल , जमीन से विस्थापित होकर पुरखो की संस्कृति से अलग होना साथ ही विकास के नाम यूरेनियम खनन से होने वाली विकिरण प्रभाव की त्रासदी है |   आदिवासी भारतीय समाज की एक ऐसे अनसुलझे पहलू से जुड़ा हुआ है जिसको सुलझाने में भारतीय सामाजिक व्यवस्था में अमूलचुल परिवर्तन की आवश्यकता होगी | आदिवासी  भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था से दूर घने जंगल , पर्वत , पहाड़ की आदिम खुशबू है जो इस धरा की प्राकृतिक नियम के अनुसार जीवन यापन करते हैं  किन्तु इस आधुनिकता के विकास दौर में हम  इतनी तेज गति से दौड़ रहे हैं कि आदिवासियों की जल , जंगल , जमीन का दोहन कर प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन कर इनके जीवन को त्रासदी की भयंकर मर झलने के लिए छोड़ देते हैं | वर्तमान में विकास के नाम से जिस तरह जल ,

मुक्तिबोध के काव्य में अन्तःसंघर्ष

मुक्तिबोध के काव्य में अन्तःसंघर्ष अजय कुमार चौधरी सहायक प्राध्यापक , हिन्दी पी. एन. दास कॉलेज , पलता Email – ajaychoudharyac@gmail । com संपर्क- 8981031969/ 98742455556              हिन्दी साहित्य जगत की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि कवि या साहित्यकार का महत्व मृतयोपरांत ही समझा जाता है | मुक्तिबोध के साथ कमोवेश ऐसा ही हुआ जब तक वो जीवित थे तब तक उनकी कोई काव्य-संग्रह प्रकाश में  नहीं आया |   हालांकि प्रयोगवदी कविता की शुरुआत हम मुक्तिबोध से मान सकते हैं | ‘ अज्ञेय ’ के सम्पादन में 1943 में प्रकाशित ‘ तारसप्तक ’ के पहले कवि ‘ मुक्तिबोध ’ ही है | इनकी कविता  प्रगतिवादी है , जिसमें उसकी भावनाओं और अनुभूतियों कि अभिव्यक्ति प्रतीक और बिम्ब के माध्यम से हुई है | इनकी कविता का महत्व इस बात में है कि वे अनुभवजनित विषयों को ही स्थान दिया | एक तरह कह सकते हैं कि इन्होंने कविता में जीवन जिया | इनकी कविता की भाव-भंगिमा आम पाठकजन के लिए नहीं वरन बुध्दिजीवियों की खुराक है | इनकी कविता की प्रतीक और बिम्ब योजन अच्छे-अच्छे आलोचकों तक को पानी पीला चुके हैं |   गजानन्द माधव म