नागार्जुन के उपन्यासों में जन-आंदोलन का विकास
नागार्जुन के उपन्यासों में जन-आंदोलन का विकास अजय कुमार चौधरी आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रगतिवादी धारा के प्रमुख रचनाकार नागार्जुन हिन्दी के उन विरल उपन्यासकारों में हैं जिन्होंने आजीवन समान्यजन विशेषतःकिसान-मजदूर वर्ग की शोषण –मुक्ति के लिए साहित्य को हथियार बनाया | इनकी लेखनी उन तमाम सर्वहारा वर्ग को पर केन्द्रित है , जो आजीवन पूँजीपतियों , जमींदारों और बुर्जुआ वर्ग के तीन पाटों के बीच सदियों से पीसते आ रहे हैं | नागार्जुन यदि चाहते तो अन्य उपन्यासकारों की तरह राजपथ पर चलते हुए सुख का जीवन जी सकते थे परंतु सर्वहारा वर्ग की दुख और वेदना उन्हें राजपथ को छोड़कर जनपथ की ओर मुड़ने के लिए विवश कर दिया | साहित्यकार अपनी संवेदना और सहानुभूति के आधार पर अपनी लेखनी का क्षेत्र तय करते हैं | ऐसे में हम देखते है उनकी संवेदना और सहानुभूति किसान-मजदूर , शोषित , दलित , उत्पीड़ित वर्ग के प्रति है | उनके साहित्य में वर्णित घटना , विचारधारा , दृष्टि , संवेदना , कला और भाषा – इन सभी स्तरों पर नागार्जुन का समग्र साहित्य जन-प्रतिबद्ध है | दरअसल मानवोचित अधिकार , राजनीतिक , सांस्