हिंदी का विश्व स्वरूप


हिन्दी का विश्व स्वरूप
                                                                                                                   अजय कुमार चौधरी

                       प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक राजभाषा होती है जिससे राजकीय व प्रशासनीय कार्य का सम्पादन किया जाता है| भाषा वह साधन है जिसके माध्यम  से मनुष्य  एक-दूसरे से अपनी भावना का आदान-प्रदान करता है, अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करता है | हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है| भारतवर्ष के प्रायः प्रान्तों में बोली और समझी जाती है | किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा तब दिया जा सकता जब वह पूरे राष्ट्रवासियों द्वारा बोली और समझी जाए | भारतवर्ष को आजादी मिले 67 वां वर्ष हो चुका है, पर विडम्बना यह है कि हम आज भी भाषायी स्तर  पर मानसिक रूप से गुलाम बने हुए है | भारतवर्ष लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का उपनिवेश रहा था | अंग्रेज़ अपनी औपनिवेशिक शक्ति को बकरार रखने के लिए सबसे पहले भारतीय कौमी एकता को निशाना बनाया | इस कौमी एकता को तोड़ने के लिए कभी भाषायी हथियार, तो कभी धार्मिक तो कभी सांस्कृतिक हथियारों का सहारा लिया | सन 1857 ई0 की  क्रांति के बाद भारतीय समाज में देश के प्रति जागरूकता आई | अंग्रेजों के नीतियों को भारतीय अच्छी तरह समझकर विरोध करना शुरू किए | भारतीय समाज का प्रत्येक वर्ग एकता के सूत्र में बंध कर अंग्रेजों के नीतियों का पुरजोर विद्रोह शुरू किया | हिन्दू और मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोगों ने एक जुट होकर जंग-ए- आजादी में अपनी शाहादत देना शुरू किया |एक तरफ भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी थे तो दूसरी तरफ अशफ़्फाक उल्ला खाँ जैसे वीर थे | हिन्दू –मुस्लिम एकता अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई थी | इस कौमी  एकता को तोड़ने के लिए वे भाषायी नीति को हथियार बनाया | पहले हिन्दी– उर्दू एक ही बोली समझी जाती थी | किन्तु अंग्रेजों ने फुट डालो और राज करो वाली नीति के तहत हिन्दी और उर्दू को अलग – अलग कर धर्म के साथ जोड़ दिया | हिन्दी को हिन्दू धर्म के साथ और उर्दू को इस्लाम धर्म  के साथ जोड़कर  इन दोनों की  एकता में फुट डाल, दोनों संप्रदायों में दुश्मनी की नींव डाल दिया |अंग्रेजों की भाषा नीति ने जहाँ भाषा को भाषा से अलग कर दिया , वहीं धर्म और संस्कृति को भी बाँट दिया |  अंग्रेज़ अपनी इसी नापाक इरादों के साथ अँग्रेजी को भारतीय शिक्षा पध्दति पर लाद  दिया | अँग्रेजी शिक्षा की शुरूआत नौकरशाही पध्दति को बढावा  देने के उद्देश्य से किया था | अँग्रेजी शिक्षा के माध्यम से प्रशासन व्यवस्था को सुचारु ढंग से अग्रसर करने के लिए लिए नौकरों और अधिकारियों की जमात खड़ा करना था | आज यही नौकरशाही पध्दति अँग्रेजी को इतना महत्व देती है कि आजादी के 68 वें वर्ष बीत जाने के बाद भी हिन्दी संवैधानिक रूप से अपनी  गरिमा को प्राप्त नहीं कर पायी है | मेरा मानना है कि हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी बांधा नौकरशाही ही है | नौकरशाह की  कुल संख्या का मात्र 30% ही हिंदी भाषी है वो भी अँग्रेजी  मानसिकता से पूर्ण |  हिंदी के विकास के लिए काम  कर रहे हिन्दी प्रेमियों की संख्या नौकरशाहों की कुल संख्या का मात्र 3% है | अब आप अनुमान लगा सकते है कि हिन्दी की विकास की गति क्या रही है | एक तरफ हिन्दी को संवैधानिक रूप से प्रथम भाषा का दर्जा दिलाने के बाद भी अनवरत संघर्ष जारी है , वहीं दूसरी तरफ नौकरशाहों के उच्च अधिकारी अँग्रेजी को प्रशासनिक भाषा के रूप में महत्व दे रही है | वकौल इतना होने के बावजूद भी हिन्दी अपनी गरिमा के साथ हवा में सुगंध की भाँति देश ही नहीं विश्व के कोने-कोने को सुगंधित कर रही है | 20 वीं शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतरराष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ |विश्व बाजार में वेब, विज्ञापन , संगीत, सिनेमा, और बाजार के क्षेत्र में हिंदी कि मांग जिस गति से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं |
विश्व में हिंदी का स्थान -  हिन्दी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो पूरे राष्ट्र ही नहीं बल्कि अपनी ओजस्विता ,माधुर्यता और  गुणवत्ता की वजह से विश्व के हृदय पर राज करना शुरू कर दी है | पृथ्वी की मानचित्रों पर जब हम नजर डालते है तो पाते है कि हिन्दी अपनी पूरी गरिमा के साथ विश्व के सिंहासन पर विराजमान हो रही है | वैसे तो  विगत कई सालों से भाषाविद्वानों का मानना है कि मंदारिन विश्व में सबसे अधिक बोली और समझी जाती है, किन्तु नवीन आंकड़े  कुछ और ही बयां करती है | डॉ0 जयंती प्रसाद नौटियाल के शब्दों में हिंदी के विषय में आरंभ से ही विदेशियों की धारणा गलत रही है । संसार भर के भाषाविद् हिंदी के नाम पर सिर्फ़ 'खड़ी बोली' को ही हिंदी मानते आए हैं जबकि यह सच नहीं है । हिंदी की बोलियाँ भी इसमें शामिल की जानी चाहिए थी। साथ ही विदेशियों ने उर्दू को अलग भाषा के रूप में गिना है यह तो बिल्कुल ही गलत है। उर्दू अलग से भाषा नहीं है बल्कि हिंदी का ही एक रूप है। संसार का कोई भी भाषा विज्ञानी उर्दू को अलग कैसे मान सकता है? क्योंकि भाषा तो भाषिक संरचना से वर्गीकृत होती है। उर्दू की अलग से व्याकरण नहीं है । इसमें अधिकांश शब्द व व्याकरण व्यवस्था हिंदी की ही है । अतः हिंदी से इसे अलग भाषा मानना कतई युक्तिसंगत नहीं हैं। हिंदी की बोलियाँ और उर्दू बोलने वालों की संख्या मिला देने से विश्व में हिंदी जानने वाले 1023 मिलियन से अधिक हैं जबकि मंदारिन जानने वाले केवल 900 मिलियन से थोड़े से अधिक हैं। अर्थात मंदारिन जानने वालों से हिंदी जानने वाले 123 मिलियन अधिक हैं । अतः यह सिद्ध हो गया है कि हिंदी जानने वाले विश्व में सर्वाधिक हैं|’’
                                    डॉ0 जयंती प्रसाद नौटियाल के द्वारा प्रस्तुत विभिन्न देश और हिंदी भाषी के आंकड़े इस प्रकार है-(विश्व में हिंदी फिर पहले स्थान पर ,     भाषा शोध अध्ययन 2012 का निष्कर्ष)           भारत (808000000), जापान ( 17000) ,पाकिस्तान (120000000) , युगांड (16000) , बांग्लादेश (56330000), रूस (16000), नेपाल (16500000)    , कोरिया (15000), मलेशिया (2600000),  स्वीट्ज़रलैं  (15000),   म्यांमार    (2500000), चीन (15000),  यूनाईटेड किंगडम   (2400000),           स्वीडेन (12000), अमेरिका(1500000),           सेशेल्स (12000), दक्षिण अफ्रीका (1500000),लेबनान(12000),सऊदी अरब(1450000), ब्रुनई (11000), श्रीलंका          (950000),बोस्तवान(11000),कनाडा    (950000), ऑस्ट्रिया (11000), यमन(900000)        , सेंट विनसेंट(10000),संयुक्त अरब इमारात(900000), मालदीव (10000),मॉरिशस (800000),ग्रीस(10000),भूटान (660000),बेल्जियम( 8000), फ़ीजी         ( 450437), फिनलैंड (8000),त्रिनिडाड और टोबैगो( 450000), इक्वाडोर (6500), ओमान ( 400000),   ग्यूटमाल        (6100), गुयाना  (360000), नॉर्व   (6000),   कुवैत   (350000),  घाना (6000), सिंगापुर (300000), निकारागुआ (5000), सूरीनाम (250000), विएतनाम (5000), नीदरलैंड (250000),वैनेज़ुएला (5000),पैरागुआ(162000),सूडान (5000), कतार (160000 ), सेंट लूसिया(5000),बाहरीन(150000),प्युरटो रिको( 5000),ईराक          (111100), जॉर्डन (5000),  थाइलैंड (100000), यूक्रेन (40000 ), फ़िलीपीन (100000), पनाम (4000),   केनिया (100000), इजिप्ट(4000),ऑस्ट्रेलिया(100000),बारबाडोस(3000),    मैक्सिको( 90000),      दक्षिण कोरिया(2600),  जमैका (75000)      ,डेन्मार्क(2500),तंज़ानिया( 70000), ब्राज़ील(2200),जर्मनी (70000),ताइवान(2000),न्यूजीलैंड(60000),सीरिया(2000),इटली(600000)आयरर्लैंड(2000),पुर्तगाल(50000),इरिट्रिया(2000), इस्राइल (50000),सेंट किटस औ(1500),इंडोनेशिया( 50000) पापुआन. जी.( 1500),फ्रांस( 50000),कज़ाकिस्तान (1500),हांगकांग  ( 45000), सर्बिया   (1100), अफगानिस्तान (42000),          इथिओपिया(1100),नाइजीरिया( 35000), वर्जिनिया(1000), स्पेन( 30000),उज़बेकिस्तान         (1000),मैडागास्कर (30000),पोलैंड (1000),मोज़ांबीक(25000),ईरान(1000) ज़ाम्बिया(22000), चिली(1000),ज़िंबाग्वे( 21000), बेलिज़(1000),लीबिया(20000)    तिब्बती व भारतीय शरणार्थी (300000),अर्जेंटीना(17500), पेरू( 17000) बाकी बचे देश (100000).कुल मिलाकर ( 1023374637)
                    सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में सैन्सस ऑफ़ इंडिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेज़ी भाषियों से अधिक है। इस प्रकार हम देखते है कि हिन्दी विश्व के लगभग 106 देशों में बोली और समझी जाती है और  बोलने वालों कि संख्या लगभग 1023 अरब है जबकि मंदारिन ( चीनी भाषा) विश्व में 900 अरब लोगों को द्वारा बोली जाती है| इस दृष्टि से हम कह सकते है कि हिन्दी विश्व की प्रथम भाषा हो गई है |
विश्व में हिंदी विकास कि धारा - हिन्दी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा के स्तर को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी | किसी भाषा को विश्व स्तरीय भाषा का दर्जा तब दिया जा सकता है, जब वह भाषा निम्न गुणों से युक्त हो - संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है । वह सबसे अधिक सरल भाषा है । वह सबसे अधिक लचीली भाषा है। वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है । हिंदी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है। हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है । तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही। भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन भारत की सम्पर्क भाषा भारत की राजभाषा अब विश्व मेँ अब अपनी नई पहचान बना ली है |
  हिंदी भाषा विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों में तथा सैकड़ों छोटे-छोटे केन्द्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है | विदेशों में लगभग 25 पत्र –पत्रिकाएँ नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही है | यूooo के हम एफo एमo’ सहित अनेक देश हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं | बीo बीo सीo, जर्मनी  के डॉयचे वेले , जापान के एनo  एच 0 वर्ल्ड और चीनी के चायना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय है |भारतीय संस्कृति के अंतगर्त योग, संगीत, आर्युवेद ,हस्तकला आदि तक पहुंचने के लिए विदेशी हिंदी को बड़ी रुचि के साथ स्वीकार कर रहे है  | तथा अपने देश में हिंदी की विकास के उचित व्यवस्था भी कर रहे है |
विश्व में हिन्दी की पत्र-पत्रिकाएँ – विश्व स्तरीय हिन्दी की प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दी की पत्र - पत्रिकाएँ भी अहम भूमिका निभा रही है | विश्व भर में लगभग 150 पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही है जो प्रवासी भारतीय के द्वारा नियमित रूप से साहित्य विधाओं का बढ़ावा दे  रही है |      नए–नए रचनाकारों की रचनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए उन्हें साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित करती है |विश्व की कई संस्थाएं- हिंदी यू0 ए0 ई0, हिंदी सोसाइटी सिंगापूर, वर्जीनिया प्रांत के रोसलीन में स्थापित अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, लंदन स्थित यूनाइटेड किंगडम हिंदी, बर्गीघम स्थित गीतांजली बहुभाषी समुदाय , मैनचेस्टर स्थित हिंदी भाषा समिति, न्यूयार्क स्थित भारतीय भाषा संगम आदि  भी हिंदी की  विकास के लिए अपनी महत्वपूर्ण योगदान देकर इसकी मान बढ़ा  रही है |  इन संस्थाओं के मधायम से कई विश्व स्तरीय ऑनलाइन पत्रिकाओं का भी प्रकाशन हो रहा है | ये पत्रिकाएँ – भारत दर्शन, सरस्वती पत्र, हेल्म (यूनाटेड किंगडम), हिन्दी नेस्ट, क्षितिज, अभिव्यक्ति, अन्यथा, अनुभूति, हिन्दी परिचय पत्रिका ,गर्भनाल , कर्मभूमि, हिन्दी जगत, हिन्दी बाल  जगत, विज्ञान प्रकाश , प्रवासी टुडे , पुरवाई , ई –विश्व आदि ऐसे कई और पत्रिकाएँ विश्व में हिंदी के मान को बढ़ा रही है |
विश्व में हिंदी प्रचार- प्रसार में भारतीयों का दायित्व - हिंदी के प्रचार एवं प्रसार कार्य में भारत सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों  रुपए व्यय करती रही है अब तक 10 सम्मेलनों में भारत सरकार ने करोड़ों रूपए  व्यय किए हैं ताकि  विश्व हिंदी सम्मेलन सफल हो सके | प्रवासी भारतीय भारत  सरकार के  सहारे चलने तथा आलोचना करने के स्थान पर स्वावलंबी बनकर प्राण-प्रण से हिंदी का प्रचार एवं प्रसार करें |हमें समय की पुकार सुनकर जागरूक हो जाना चाहिए और हिंदी के वर्तमान को सुधार कर सुरक्षित स्वर्णिम भविष्य की नींव डालना चाहिए हमें इन देशों की स्वतः चरमराती हुई जाति-पाति, प्रांत तथा प्रांतीय मातृभाषा की सीमाओं से बाहर निकलकर भारतीय संस्कृति की संवाहिका भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को समुचित स्थान एवं सम्मान देना चाहिए | प्रत्येक  प्रवासी भारतीय को अपनी भाषा के प्रति पूर्ण निष्ठावान होना चाहिए | अपने परिवार के सदस्यों के  साथ हिंदी में  आवश्यक रूप से वार्तालाप करनी होगी | आने वाली पीढ़ियों को अपनी भाषा कि गरिमा कि पहचान करनी होगी तभी वो स्वेच्छा से अपनी भाषा को स्वीकार कर सकता है |  हम जब कभी किसी अन्य भारतीय से कहीं मिलें, तब हमें अवसर एवं परिस्थितियों अनुसार यथा संभव हिंदी में ही वार्तालाप का शुभारंभ करना चाहिए फीजी, मॉरिशस एवं सूरीनाम के प्रवासी भारतीय तो निःसंकोच धाराप्रवाह हिंदी बोलते ही हैं, अब त्रिनिडाड एवं गयाना के प्रवासी भारतीय भी थोड़ी-थोड़ी हिंदी बोलने लगे हैं इसके अतिरिक्त उनसे हिंदी में वार्तालाप आरंभ करने से उन्हें हिंदी सीखने की प्रेरणा मिलेगी त्रिनिडाड में अब पर्याप्त संख्या में लोग कुछ शब्द हिंदी में समझने और बोलने योग्य हो गए हैं। प्रवासी भारतीयों को जहां तक संभव हो सरकरी कार्यकलाप के लिए हिंदी का प्रयोग करना चाहिए |हमें हिंदी पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं को यथाशक्ति क्रय करके पढ़ना चाहिए स्थानीय हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के अतिरिक्त भारत तथा अन्य देशों में प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को भी यथाशक्ति संरक्षण तथा प्रोत्साहन देना चाहिए | हमें सामयिक अराजनैतिक आंदोलन चलाकर स्थानीय सरकारों से अभ्यर्थना करना चाहिए कि हिंदी उन देशों तथा राज्यों के पाठ्य-क्रम में सम्मिलित की जाए यदि संभव हो तो राजनीतिक दबाव भी डालना उचित होगा | प्रत्येक भारतीय को अपने निजी कार्यालय तथा बैंक आदि में यथासंभव अपने हस्ताक्षर हिंदी में ही करना चाहिए | हस्ताक्षर अभियान चलाकर अहिंदी भाषियों को भी इस ओर प्रेरित करना चाहिए | हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी कि प्रतियोगिता का  आयोजन कर हिंदी के प्रति लगाव को बढ़ाया जा सकता है | प्रत्येक देश में हिंदी भाषा-भाषियों, कवि एवं लेखकों की समितियाँ अथवा संस्थाएँ बनाकर साहित्यकारों को सृजन की प्रेरणा देकर कविता-कहानी-निबंध आदि की गोष्ठियों, प्रतियोगिताओं तथा राष्ट्रीय एवं सुविधानुसार अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन करना चाहिए इन्हीं संस्थाओं को निजी रूप में हिंदी के पठन-पाठन की व्यवस्था कर हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी करना चाहिए हिंदी पाठशालाओं में अपने बच्चों को अधिक से अधिक संख्या में भेजें इसी प्रकार जब हिंदी राजकीय पाठ्यक्रम में उपलब्ध हो तो अपने बच्चों को हिंदी विषय ग्रहण करने की सबल प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान करें।  रोमन लिपि का प्रयोग से बचना चाहिए |
                          अंततः हम कह सकते है कि यदि हिंदी को विश्व स्तरीय दर्जा दिलाना है तो उसके विकास के लिए  समस्त भारत वासियों को प्रयत्न शील होना चाहिए ,इसके लिए आवश्यक है कि हम हिंदी में बोले,हिंदी में सोचे,हमारा अंतकरण तक हिंदी का वास हो| दोहरी मानदंड कि नीति से मुक्त होना आवश्यक  है अन्यथा एक तरफ हम हिंदी के विश्वरूप कि चर्चा करें और दूसरे रूप में बाजारू भाषा को आर्थिक समृद्धि का हवाला देते हुए हिंदी को दरकिनार कर उसका अपमान करें| यदि हमें विश्व में अपनी पहचान बनानी है तो अपनी संस्कृति के महत्व को कभी धूल-धूसरित न होने दें | हमारी पहचान अपनी भाषा और संस्कृति से है| यदि विश्व में अपनी अस्मिता अक्षुण्य बनाए रखना है तो हिंदी का विकास विश्वस्तरीय होना आवश्यक है | युनेस्को ने विश्वभाषाओं के खतरे में  एटलस ने बताया है कि “किसी भी समुदाय कि भाषा तब खतरे में पड़ती है जब उस समुदाय के 30% बच्चे इसकी उपेक्षा करते हैं|” अज्ञेय ने “भाषा और समाज” में कहा है कि “भाषा अपने आप को पहचानने का साधन है,भाषा के बिना अस्मिता कि पहचान नहीं होती और उसके साथ अनिवारी रूप से जुड़ी हुई है|” आचार्य शुक्ल भाषा की महत्ता को बताते हुए कहते है “भाषा ही जातीय विचारों का रक्षक है|” अब अंततः मैं हिन्दी की विश्वस्तरीय गरिमा का गुणगान में कवि सोम ठाकुर की दो पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ –
                                       करते है तन - मन से बंदन ,जन- गण की अभिलाषा की
आराधना अपनी संस्कृति की ,अभिनंदन अपनी भाषा की |

साभार –
1-हिन्दी विकिपीडिया
2-आलेख - विश्व में हिंदी फिर पहले स्थान पर , भाषा शोध अध्ययन 2012 का निष्कर्ष- डॉ0 जयंती प्रसाद नौटियाल
3- आलेख- प्रवासी भारतीय और हिंदी: कुछ सुझाव  - प्रो. हरिशंकर आदेश
4-आलेख- हिन्दी की अंतरराष्ट्रीय भूमिका : प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन
5-आलेख-हिंदी भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं का योगदान (प्रो. ऋषभदेव शर्मा)

अजय कुमार चौधरी                                
सहायक प्राध्यापक                                                                            
पी0 एन0 दास कॉलेज,पलता
उत्तर 24 परगना ,पश्चिम बंगाल,भारत
दूरभाष- 08981031969




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