मनुवाद के अँधेरे से अम्बेडकरवाद का सवेरा तक "नया सवेरा": जालिम प्रसाद

मनुवाद के अँधेरे से अम्बेडकरवाद का सवेरा तक

अजय चौधरी

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 या सवेराका अर्थ ही है फिर से नई स्फूर्ति के साथ जगना, नई चेतना का संचार करना, नई आशाओं को संजोना और पुरानी रूढ़िवादी मान्यताओं का नाश कर एक नए समता मूलक दुनिया का निर्माण करना। जालिम प्रसाद कविता संग्रह ‘नया सवेरा’ दलित-बहुजन समाज को युगों की अज्ञानता, शोषण और जड़ता से बाहर निकलकर, एक सक्रिय नागरिक के रूप में जागृत होने का आह्वान करता है। यह उस सुप्त चेतना को झकझोरता है जो मनुवाद और पाखंड के जाल में फँसकर मलिन हो गई है । कवि का लक्ष्य दलित समाज में आई पाखंडवाद की मलिनता को दूर कर, उन्हें एक शिक्षित, संगठित और स्वाभिमानी जीवन के लिए तैयार करना है। यह संग्रह शोषितों को अपनी दासता और लाचारी त्यागकर, संघर्ष के बल पर स्वयं का आत्म-सम्मान और अधिकार हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।नया सवेराचेतना के संचार के लिए अम्बेडकरवाद को एकमात्र आधार बनाता है। यह चेतना वैज्ञानिक, तार्किक और मानवतावादी है। यह चेतना अंधविश्वास, रुढ़िवाद, परम्परागत मूर्ति पूजा और चमत्कार को दरकिनार कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने का समर्थन करती है। यह चेतना जात-पात, छुआछूत और ऊँच-नीच के भेदभाव को अस्वीकार कर नागरिक समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का समर्थन करती है।  कविताओं को जन-जागरण का एक धारदार हथियार माना गया है, जिसका उद्देश्य दलित समाज को शोषण के विरुद्ध मुखर होने और संघर्ष करने का उचित प्रशिक्षण देना है। नए सवेरे के लिए कवि पुरानी और भेदवादी मान्यताओं, विशेषकर मनुवाद को समूल नष्ट करने का संकल्प लेते हैं।

कवि का मानना है कि कविता का उद्देश्य रस की आनंदानुभूति नहीं, बल्कि जन-जागरण का एक हथियार है । इसी हथियार का सहारा लेकर जालिम प्रसाद ने समाज के पिछड़े लोगों में अधिकार के लिए संघर्ष, शोषण और उत्पीड़न का विरोध तथा शिक्षा का महत्व जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर कविता का सृजन किया है। हालांकि, अभी भी दलित समाज में वह चेतना नहीं आई है जिसकी आशा अम्बेडकरवादी करते हैं । दलित समाज के कुछ तबके ने शिक्षा तो प्राप्त कर ली है , लेकिन जिस चेतना का विकास होना चाहिए था, वह पाखंडवाद से घिरकर मलिन हो गई है । कवि ने दलित समाज को चेतना-सम्पन्न करने के लिए कविता का सहारा लिया है । वह कविता को आनंद का पर्याय नहीं मानते, बल्कि इसे एक धारदार हथियार मानते हैं । उनका मानना है कि इस हथियार को प्राप्त करने के बाद, इसे संचालित करने के लिए उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और यह प्रशिक्षण एकमात्र अम्बेडकरवाद ही दे सकता है। कवि ने इस कविता संग्रह का मूल आधार ही अम्बेडकरवाद को बनाया है। कवि ने अपनी कविताओं को जन-जागरण का एक धारदार हथियार माना है। कवि पाखंड और अंधविश्वास से घिरे समाज को तार्किक और वैज्ञानिक सोच अपनाने का प्रशिक्षण देते हैं, जो अम्बेडकरवाद का मूल है। इनकी कविताएँ यह सिखाती हैं कि ज्ञान ही अंधविश्वास से मुक्ति दिलाएगा।

अंधविश्वास से नाता तोड़ तर्क पर कदम रखें।

हमारी वैज्ञानिक सोच ही विश्व गुरु बनाएगा।”

इनकी कविता समाज को उनके संवैधानिक अधिकारों की पहचान कराती हैं, जिसके लिए डॉ. अम्बेडकर ने कार्य किया। शोषित वर्ग को निष्क्रियता त्यागकर, अन्याय के खिलाफ मुखर होने और एकजुट होकर लड़ने की प्रेरणा देती हैं। कवि शोषकों को खुली चुनौती देकर संघर्ष की भावना को जगाते हैं।

सीमाहीन हो गया अत्याचार सहते-सहते,

एकजूट होकर निरंतर संघर्ष करना चाहिए।”

सिंहासन को तोडूंगा हार नहीं मानूँगा।”

कवि शिक्षित होकर संगठित होने और संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते हैं, जो अंबेडकरवाद का सूत्र है। कविताओं के माध्यम से दलित समाज को यह सिखाया जाता है कि उनका इतिहास और साहित्य कितना महत्वपूर्ण है और उन्हें मनुवादी साहित्य के वर्चस्व को कैसे नकारना है। दलित साहित्य को यथार्थवादी, प्रगतिवादी और जनचेतना का साहित्य मानकर इसकी विस्तृत परिभाषा देती हैं, जिसमें हासिए के समाज की पीड़ा शामिल हो। तथागत बुद्ध, गुरु रविदास, संत कबीर और सावित्रीबाई फुले जैसे बहुजन महापुरुषों की जीवनी से प्रेरणा लेकर सम्मान और स्वाभिमान से जीना सिखाती हैं। इनकी कविताएँ दलित समाज में आई पाखंडवाद की मलिनता को दूर कर, उन्हें एक समर्थ, सजग और चिंतनशील बहुजन की तरह अपने अधिकार और कर्तव्य को वापस लेने का प्रशिक्षण देती हैं।

जालिम प्रसाद द्वारा रचित कविता संग्रह नया सवेराआधुनिक दलित साहित्य और अम्बेडकरवादी वैचारिकी का एक सशक्त दस्तावेज़ है। कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गूढ़ विषयों को छुआ है, उन पर एक विस्तृत, यथार्थवादी और तार्किक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया है

यह संग्रह डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के विचारों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है। कवि अम्बेडकरवाद को केवल एक सामाजिक आंदोलन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना के रूप में देखता है। कवि स्पष्ट रूप से कहता है कि “अम्बेडकरवाद का दूसरा नाम राष्ट्रवाद है”। इस राष्ट्रवाद से अभिप्राय अम्बेडकरवादी राष्ट्रीय चेतना से है, जिसके बिना अम्बेडकरवाद अधूरा है। इस संग्रह में राष्ट्रवंदन, भारत भूमि की मिट्टी, स्वतंत्रता, गणतंत्र, संविधान और तिरंगा जैसे विषयों को पहले स्थान पर रखा गया है। कवि वैज्ञानिक सोच और तार्किक बुद्धि का समर्थन करते हैं। वह अंधविश्वास, रुढ़िवाद, परम्परागत मूर्ति पूजा, पूजा-पाठ, अवतारवाद, भाग्य और चमत्कार को दरकिनार कर मानवता का समर्थन करते हैं। तथागत बुद्ध कौन?’ कविता में बुद्ध को परिभाषित करते हुए कहते हैं ईश्वर का अवतार नहीं पर इंसानियत का नाम बुद्ध है।”  अम्बेडकरवाद को मनुवादी जाल, जाति, अस्पृश्यता, छुआछूत और ऊँच-नीच से मुक्ति का मार्ग बताया गया है।

मनुवादी जाल से मुक्ति है अंबेडकरवाद।

जाति अस्पृश्यता से मुक्ति है अंबेडकरवाद।”

कवि मनुवाद को भारतीय समाज के पतन का मूल कारण मानते हैं। संग्रह में मनुवाद के विरुद्ध एक विद्रोही स्वर प्रमुखता से व्यक्त हुआ है । मनुवाद को दलित पिछड़ेपन , भुखमरी, बेरोजगारी  और तानाशाही शासन  का कारण बताता है। भारत और मनुवादकविता की पंक्ति है-

 “भारत में भुखमरी का कारण है मनुवाद।

 भारत में गुलामी का कारण है मनुवाद।”

कवि जाति को निचले पायदान नापने का मापदंड, सामाजिक अनेकता और मानवता की गुलामी  का नाम बताते हैं। जाति क्या है?’ कविता में जातिगत अत्याचार की क्रूरता का उल्लेख इन पंक्तियों में है-

 “लाचार के ऊपर पेशाब करने का नाम जाति है।

जूते में पेशाब कर पिलाने का नाम जाति है।”

जो देश की स्वतंत्रता के बावजूद दलित-बहुजन समाज के वंचित होने की पीड़ा को दर्शाता है। भले ही भारत आज़ाद हो गया, लेकिन दलित-बहुजन समाज आज भी जातिवाद, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा के चंगुल में जूझ रहा है। अधूरी आजादीकविता का केंद्रीय दर्द इन पंक्तियों में झलकता है-

भारतीय आजादी हो गई बूढ़ी,

जाति से मुक्ति कब मिलेगी?”

कवि ने भुखमरी और महँगाई को भारत की घातक स्थिति बताया है तथा मजदूरों की दयनीय दशा को भी चित्रित किया है। मजदूरकविता में वे कहते हैं-

कोठियाँ बनाता हूँ मैं झोपड़ी में रहता हूँ मैं।

खुशियों से अतिदूर हूँ मैं इसीलिए मजदूर हूँ मैं।”

युवाओं को संगठित होने, संघर्ष करने और गरीबी मिटाकर स्वाभिमान से जीने के लिए तैयार रहने का संदेश देते हैं।

कवि ने अम्बेडकरवाद की एक मुख्य कड़ी के रूप में महिला चिंतन को स्थान दिया है, क्योंकि उनके अनुसार बिना स्त्री विमर्श अम्बेडकरवाद अधूरा है । नारी अस्तित्व, महिला उत्पीड़न, महिला सशक्तिकरण और लावारिस वेश्याजैसे संवेदनशील विषयों पर चेतना जगाते हैं। वे नारी को इस सृष्टि का आधार और परिवार की शान बताते हैं। ‘लावारिस वेश्याकविता सामाजिक पाखंड को उजागर करती है, जहाँ पेट की आग बुझाने के लिए स्त्री को अपना तन बेचना पड़ता है

पेट ही के लिए समाज तेजती है वेश्या।

 तन ढकने के लिए तन बेचती वेश्या।”

इस संग्रह में तथागत बुद्ध, संत कबीर, गुरु रविदास, रमाबाई और सावित्रीबाई फुले जैसी क्रांतिकारी महिलाओं और महापुरुषों को प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्हें महिला सशक्तिकरण का साक्षात रूप और ज्ञानज्योतिबताया गया है, जिन्होंने कीचड़ और पत्थर खाकर भी बालिका शिक्षा के लिए संघर्ष किया। कीचड़ पत्थर खानेवाली ज्ञानज्योति सावित्रीबाई थीं।” महापुरुषों की जीवनियाँ दलित बहुजन समाज को गर्व से भरती हैं और उन्हें अधिकारप्राप्त करने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती हैं। इन विशेषताओं के साथ, ‘नया सवेराएक बहुआयामी रचनात्मकता और नवचेतना  का काव्य संग्रह है, जो हिंदी साहित्य में अम्बेडकरवादी दलित साहित्य के एक महत्वपूर्ण दौर का प्रतिनिधित्व करता है।

नया सवेराकी आत्मा इसका अम्बेडकरवादी चिंतन और दलित-बहुजन समाज के प्रति गहरी सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना है। कवि की भावनाएँ शोषितों के प्रति दर्द, अन्याय के प्रति आक्रोश और एक नए समतामूलक समाज के निर्माण की आकांक्षा में निहित हैं। इस संग्रह का भाव पक्ष का केंद्रीय स्वर समाज में व्याप्त गहरी विषमताओं के प्रति आक्रोश और यथार्थवादी चित्रण है। कवि जातिवाद, भुखमरी, बेरोजगारी और शोषण को भारतीय समाज की घातक वास्तविकता मानता है।

भारत में भुखमरी का कारण है मनुवाद।

भारत में गुलामी का कारण है मनुवाद।”

भारतीय आजादी हो गई बूढ़ी, जाति से मुक्ति कब मिलेगी?”

कवि मजदूरों के कठिन जीवन, शोषण और गरीबी का मार्मिक वर्णन करता है। वैचारिक स्तर पर अम्बेडकरवाद के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध है, जिसे वह ज्ञान, संगठन और संघर्ष का सूत्र मानता है। राष्ट्र को किसी देवी-देवता के रूप में न देखकर, कवि उसे अम्बेडकरवादी राष्ट्रीय चेतना से जोड़ता है, जिसका आधार लोकतंत्र, समानता, स्वतंत्रता न्याय और भ्रातृत्व है।

अंबेडकरवाद का दूसरा नाम राष्ट्रवाद है।

राष्ट्रवाद से अभिप्रायः अंबेडकरवादी राष्ट्रीय चेतना से है।”

सबसे अनोखा है भारतीय संविधान।

सबसे अनूठा है भारतीय संविधान।”

कवि अंधविश्वासों को त्यागकर तार्किक बुद्धि अपनाने का आग्रह करता है, जिसके लिए डॉ. अंबेडकर के बौद्ध धम्म को समझना अनिवार्य बताया गया है। जो अंधविश्वास, रुढ़िवाद, परम्परागत मूर्ति पूजा, पूजा-पाठ, अवतारवाद, भाग्य, भगवान, चमत्कार आदि को दरकिनार कर मानवता का समर्थन करता है।” अन्याय के खिलाफ विद्रोह का स्वर है, जो संघर्ष के माध्यम से नया सवेरालाने की आशा में परिवर्तित होता है। कवि सामाजिक शोषण, पूँजीवाद और सांप्रदायिक सामंतवाद के प्रतिकार का स्वर  प्रमुखता से अभिव्यक्त करता है।

माना कि स्कूलों में द्रोणाचार्य बैठे हैं,

एकलव्यों को जगाऊँगा हार नहीं मानूँगा।”

इस संग्रह का शीर्षक कविता ही एक समर्थ और चिंतनशील बहुजन की तरह एक नया विहान पाने का जज्बा और मंसूबा व्यक्त करती है।

धरती से मिटा देंगे जालिम जुल्म का अँधेरा,

समता बंधुत्व का सुखदाई सवेरा आएगा।”

कवि जालिम प्रसाद साठ के पार की परिपक्व उम्र में प्रवेश किया है और कविता के क्षेत्र में नए होते हुए भी विविध अनुभवों का भंडार रखते हैं। उनकी रचनाओं का कला पक्ष सरल, सीधी भाषा और छंदों में तुकान्तक संरचना पर आधारित है। संग्रह की संपूर्ण रचनाएँ छंदों में हैं और उनकी शैली वैचारिक और तथ्यात्मक कथन पर केंद्रित है। कवि की भाषा अत्यंत सीधी, सरल और जनसाधारण की समझ में आने वाली है, जो उनके वैचारिक संदेश को प्रभावी ढंग से पहुँचाती है। अधिकतर कविताएँ अनमेल तुकान्तक फॉर्म में हैं, जिससे रचनाओं में एक लय और गेयता आती है, भले ही आलोचकों ने इन्हें न तो आधुनिक गद्य शैली और न ही तुकरहित कविता की कोटि में रखा हो।

तिलक योग्य है भारत भूमि की यह मिट्टी।

चंदन योग्य है भारत भूमि की यह मिट्टी।”

कठिनाइयों का सामना होता है संघर्ष।

अपने आप को समझना होता है संघर्ष।”

कवि ने अपने वैचारिक विचारों को व्यक्त करने के लिए बिम्बों और प्रतीकों का सहारा लिया है, खासकर विरोध और चुनौती के भाव में। कवि ने सरल प्रतीकों का उपयोग किया है, जैसे कलमको तलवार से अधिक ताकतवर बताना। कवि ने 115 कविताओं को आठ सूक्ष्म विभेदक खण्डों में बाँट कर प्रस्तुत किया है- जैसे राष्ट्रवादी’, ‘धम्म’, ‘बहुजन महिला विमर्श’, जो उनके चिंतन की गंभीरता और गहराई  को दर्शाते हैं। आलोचकों ने कवि के कुछ अभिव्यक्तियों को भावुकतापूर्ण माना है- जैसे राष्ट्र वंदन और युवा विमर्श को अंबेडकरवाद का महत्वपूर्ण पहलू मानना, लेकिन यह भावुकता उनकी राष्ट्र निष्ठा और समर्पण के रूप में दिखाई देती है। कविताओं की शैली अक्सर गद्य आलेखों के समान लगती है, मानो वे वैचारिक बिंदुओं को काव्य रूप में ढाल रहे हों। यह शैली उन्हें मजबूत वैचारिक और तथ्यात्मक कथन कहने में मदद करती है।

मनुवादी जाल से मुक्ति है अंबेडकरवाद।

जाति अस्पृश्यता से मुक्ति है अंबेडकरवाद।”

यह पंक्ति एक वैचारिक सूत्र या घोषणा पत्र के समान है। उठो अब कमान संभालो, कब तक विष घूँट पियोगे ?” सीधा, आदेशात्मक और प्रेरक शैली है।

नया सवेराकविता संग्रह का मुख्य उद्देश्य अम्बेडकरवादी चेतना का प्रसार करना और भारतीय समाज में समतामूलक परिवर्तन लाना है। संग्रह का मूल उद्देश्य अम्बेडकरवादी दर्शन को समझाना और इसे राष्ट्रवाद के साथ जोड़ना है। अम्बेडकरवाद की विस्तृत परिभाषा देना और उसे शोधार्थियों के दृष्टिगत रखना। यह स्थापित करना कि अम्बेडकरवाद का दूसरा नाम राष्ट्रवाद है”। वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ी को जागरूक, आर्थिक रूप से मजबूत, शिक्षित और सम्मान एवं स्वाभिमान से जीने के लिए तैयार करना ही मूल उद्देश्य है। इसके अलावा कवि का लक्ष्य समाज को पाखंड, जातिवाद और असमानता से मुक्त कराना है। अम्बेडकरवाद के प्रतिद्वंदी मनुवाद और भेदवादी संस्कृति पर करारा प्रहार करना तथा जाति, जातिवाद आदि से संबंधित बिंदुओं को काव्यात्मक रूप देना । इसका उद्देश्य यह सिद्ध करना है कि मनुवाद जैसी भयंकर वायरस का सफल इलाज अम्बेडकरवाद है। अंधविश्वास, पाखंड, रुढ़िवाद और समस्त सामाजिक कुरीतियों को दरकिनार कर मानवता का समर्थन करना है। साथ ही साहित्य की एक विस्तृत परिभाषा देना, जिसमें हाशिए के समाज महिला उत्पीड़न, दलित, शोषण, जातिवाद, छुआछूत, भुखमरी आदि की समस्याओं को जगह मिले।


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पुस्तक: नया सवेरा (कविता संग्रह)

लेखक: जालिम प्रसाद

प्रकाशक: स्वतंत्र प्रकाशन, दिल्ली

वर्ष : 2025

समीक्षक: अजय चौधरी

मूल्य: 299/-

 



 

 

 

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